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संत जांभोजी जी का जीवन परिचय 2024 | विश्नोई संप्रदाय | इतिहास

संत जांभोजी जी का जीवन परिचय 2024 | विश्नोई संप्रदाय | इतिहास

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संत जांभोजी जी का जीवन परिचय 2024 | विश्नोई संप्रदाय | इतिहास
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संत जांभोजी जी का जीवन परिचय 2024 | विश्नोई संप्रदाय | इतिहास

संत जांभोजी खूब भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। तथा इन्हें विश्व का प्रथम पर्यावरण रक्षक संत माना जाता है इसलिए इनका वैज्ञानिक संत कहा जाता है। इनका जन्म 1451 ईस्वी में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के दिन नागौर जिले के पीपासर गांव में हुआ था।

संत जांभोजी के पिता का नाम लोहट जी पंवार तथा माता का नाम हंसा देवी था और इनका बचपन का नाम धनराज था। जांभोजी गोरखनाथ जी के शिष्य थे। जांभोजी के चमत्कारों से प्रभावित होकर दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने भारत में गौ हत्या पर रोक लगाई थी।

जोधपुर के शासक राव जोधा तथा बीकानेर के शासक राव बीका ने संत जांभोजी का अपना धर्मगुरु बनाया था। जांभोजी ने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया था तथा मूर्ति पूजा का विरोध किया था।

जांभोजी के अनुयायी उनके उपदेशों को तथा उपदेश स्थल को सांथरी कहते हैं। जांभोजी ने अपने उपदेशों में इस संसार को गोवलवास (अस्थाई निवास) की संज्ञा दी है।

संत जांभोजी का मूल मंत्र ” विष्णु-विष्णु तूं भण रै प्राणी” है। अर्थात भगवान विष्णु के नाम का जाप करना।

1485 ई में संत जांभोजी ने विश्नोई संप्रदाय चलाया इस संप्रदाय को मानने वाले 29 नियमों का पालन करते हैं। तथा यह संप्रदाय वन्यजीवों की रक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है। इस संप्रदाय के लोग खेजड़ी वृक्ष तथा काले हिरण को पवित्र मानते हैं। विश्नोई संप्रदाय के प्रथम अनुयायी पूल्हो जी थे।

जांभोजी जी की प्रमुख रचनाएं

संत जांभोजी की बिश्नोई धर्म प्रकाश,  जंभ वाणी तथा जंभ संहिता ग्रंथों की रचनाओं की थी। जो इनकी प्रमुख रचनाएं हैं।

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