संत दादूदयाल जी का जीवन परिचय 2024 | दादू संप्रदाय | इतिहास
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संत दादूदयाल जी का जीवन परिचय 2024 | दादू संप्रदाय | इतिहास
संत दादूदयाल को राजस्थान का कबीर कहा जाता है। इनका जन्म 1544 ईस्वी में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन भारत के गुजरात राज्य के अहमदाबाद शहर में हुआ था तथा इनका बचपन का नाम बहाबली था और उनके गुरु का नाम वृद्धानंदजी (बुड्डनजी) था।
संत दादूदयाल का पालन पोषण अहमदाबाद में लोदीराम ब्राह्मण ने किया था तथा इनकी कर्म स्थली राजस्थान का ढुढा़ड़ क्षेत्र रहा है। इन्होंने अपना पहला उपदेश जयपुर के सांभर नामक स्थान पर दिया था। इनके उपदेश ढुढा़डी़ बोली में दिए गए हैं।
संत दादूदयाल के कुल 152 शिष्य हुए थे। जिनमें से इनके प्रधान शिष्यों की संख्या 52 थी। जिन्हें 52 स्तंभ कहा जाता है।
संत दादूदयाल ने 1585 में आमेर के शासक भगवान दास के सहयोग से फतेहपुर सीकरी में अकबर से भेंट की थी तथा अकबर को पुत्र प्राप्ति हेतु प्रवचन दिए थे।
दादूदयाल ने सामाजिक सद्भावना को बढ़ावा देने के लिए नियख आंदोलन चलाया था। और इन्होंने दादू संप्रदाय की स्थापना की थी। जिसे कबीरपंथी संप्रदाय तथा ब्रह्म संप्रदाय केनाम से भी जाना जाता है।
संत दादूदयाल ने 1602 ईस्वी में दादू संप्रदाय की प्रधान पीठ नरैणा (जयपुर) में स्थापित की थी। दादू संप्रदाय के पांच मुख्य तीर्थ को पंच तीर्थ कहा जाता है, जिनमें से चार (सांभर, आमेर, नरैणा, भैराणा पहाड़ी) जयपुर में है तथा एक कल्याणपुरा (नागौर) में है।
दादूदयाल की प्रमुख रचनाएं
कायाबेली ग्रंथ , हरड़े वाणी , अंग वधू , परिचय अंग , दादू वाणी तथा दादू दयाल रा दुहा संत दादू दयाल की प्रमुख रचनाएं हैं। दादूदयाल जी की रचनाओं में सधुक्कड़ी भाषा व ढुढा़डी़ बोली का प्रयोग हुआ है।