राजस्थान के प्रमुख लोक देवता | Rajasthan ke Pramukh lok Devta
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वे लोग जो आम व्यक्ति की तरह जन्म लेकर मानवता के लिए अपने प्राण त्याग देते हैं उन्हें लोक देवता कहा जाता है। वीर भूमि राजस्थान में लोक देवताओं का महत्वपूर्ण स्थान है, तथा लोक देवताओं से यहां के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है।
राजस्थान के प्रमुख लोक देवता | Rajasthan ke Pramukh lok Devta
लोक देवता रामदेव जी
इनका जन्म उडूं काश्मीर गांव की शिव तहसील (बाड़मेर) में हुआ था, इनके पिता का नाम अजमाल जी तथा माता का नाम मैणा दे था, तथा इनके गुरु बालीनाथ थे जिनसे इन्होंने शिक्षा ली थी, इनका जन्म विक्रम संवत 1463 में भाद्रपद शुक्ला द्वितीया के दिन हुआ था।
प्रतिवर्ष रामदेवरा (पोकरण तहसील) जिला जैसलमेर में भाद्रपद शुक्ला द्वितीया से एकादशी तक इनके मेले का आयोजन होता है। इनके मेले की मुख्य विशेषता सांप्रदायिकता सद्भावना तथा मेले का मुख्य आकर्षण तेरहताली नृत्य है।
लोक देवता गोगाजी
इनका जन्म चूरु जिले के ददरेवा में हुआ था। इनके पिता जीवराज चौहान तथा माता बाछल देवी थी। इन्होंने गौ रक्षा हेतु मुस्लिम आक्रांता महमूद गजनबी से भी युद्ध लड़ा। इनका मुख्य मंदिर गोगामेडी नोहर हनुमानगढ़ में स्थित है जहां खेजड़ी वृक्ष के नीचे पत्थर पर सांप की आकृति अंकित है। इनकी घोड़ी नीले रंग की थी जिसे गोगाजी बप्पा कहकर बुलाते थे।
किसान हल जोतने से पूर्व हल व हाली को गोगा राखड़ी (राखी) बांधता है।
लोक देवता पाबूजी
इन्हें प्लेग रक्षक, ऊंटों के देवता तथा लक्ष्मण के अवतार के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म कोलूमंड (फलोदी-जोधपुर) में हुआ था, इनके पिता का नाम धांधल जी राठौर तथा माता का नाम कमला दे था, इन्होंने देवल चारणी की गाय छुड़ाने हेतु अपने प्राणों की आहुति दी।
इनकी स्मृति में प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को इनकी जन्मस्थली कोलूमंड (फलोदी-जोधपुर) में मेला लगता है। मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊंट लाने का श्रेय इन्हीं को जाता है तथा ऊंट बीमार होने पर पाबूजी की पूजा की जाती है।
लोक देवता तेजाजी
इनका जन्म 1034 ई. में नागवंशीय जाट परिवार में खरनाल नागौर में हुआ था। इनके पिता का नाम तोहड़ जी तथा माता का नाम राजकुंवर व पत्नी का नाम पेमल था। इन्होंने लाचा गुजरी की गायों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी इसलिए इन्हें गायों के मुक्तिदाता तथा गौ रक्षक के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें काला में भाला का देवता भी कहा जाता है।
कृषक खेती करने से पूर्व उनके गीतों का गायन करते हैं इसलिए इन्हें कृषि कार्यों का उद्धारक देवता भी कहते हैं। इनके पुजारी को घोड़ला तथा मंदिर को थान कहते हैं। इनकी घोड़ी का नाम लीलण (सिणंगारी) था। ये राजस्थान के सर्वाधिक महत्वपूर्ण लोक देवता है। संपूर्ण राजस्थान में पूजे जाने वाले लोक देवता वीर तेजाजी है। इनका मेला परबतसर नागौर में भरता है। 2011 में तेजाजी पर डाक टिकट चोरी हुआ था। तेजाजी की प्रमुख कार्य स्थली बासी दुगारी (बूंदी) में है।
लोक देवता देवनारायण जी
इनका जन्म 1243 ईस्वी में गुर्जर समाज के बगड़ावत गोत्र में हुआ। इनका जन्म स्थान भीलवाड़ा जिले की आसींद तहसील कि गोठडावत गांव है। इनके पिता सवाई भोज तथा माता सेडू खटाणी थी। इनका विवाह है मालवा के राजा जयसिंह की पुत्री पीपलदे के साथ हुआ था। यह गुर्जर समाज की आराध्य देवता है तथा गुर्जर समाज ने विष्णु का अवतार मानता है।
गुर्जर जाति के भोपे इनकी फड़ का वाचन जंतर वाद्य यंत्र के साथ करते हैं। इन फड़ सबसे पुरानी तथा सबसे लंबी है। इनके मंदिर में ईटों की पूजा की जाती है। इन्होंने नींम गोबर का औषधि के रूप में मैं तो बताया था। ये महाराणा सांगा के आराध्य लोक देवता थे।
लोक देवता मामादेव
यह एकमात्र ऐसे लोग देवता हैं जिनका मंदिर नहीं होता है तथा प्रत्येक गांव के बाहर इनका एक कलात्मक तोरण द्वार बना होता है इनके भैसा की बलि तथा शराब चढ़ाई जाती है तथा इन्हें वर्षा का लोक देवता भी कहते हैं।
लोक देवता वीर फत्ता जी
इनका जन्म साथूं गांव (जालौर) में हुआ। ये लुटेरे से गांव की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे। इन्हें शस्त्र विद्या का ज्ञान प्राप्त था। इनका मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद सुदी नवमी को लगता है।
लोक देवता वीर बिग्गाजी
इनका जन्म जांगल प्रदेश (बीकानेर ( के जाट परिवार में हुआ था। इन्हें जाट समाज काजल गोत्र अपना कुलदेवता मानता है इन्होंने मुस्लिम लुटेरों से गाये छुड़ाते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। प्रतिवर्ष 14 अक्टूबर को इनकी स्मृति में मेला लगता है।
लोक देवता वीर कल्लाजी राठौड़
इनका जन्म मेड़ता नागौर में हुआ था। ये जयमल के भतीजे तथा मीराबाई इनकी बुआ थी। इन्हें योगाभ्यास व जड़ी बूटी का ज्ञान प्राप्त था। इनका मुख्य मंदिर रनिला चित्तौड़गढ़ में स्थित है तथा ये मेवाड़ क्षेत्र के प्रसिद्ध लोक देवता है और इन्हें 4 हाथों वाले लोक देवता के रूप में भी जाना जाता है।
लोकदेवता हड़बूजी
इनका जन्म भुंडेल (नागौर) में मेहाजी सांखला के घर हुआ था। इनका मुख्य मंदिर बेंगठी गांव (फलोदी-जोधपुर) में स्थित है। इन्हें शकुन शास्त्र का ज्ञाता माना जाता है। इनके मंदिर में बैलगाड़ी की पूजा की जाती है ये उस बैलगाड़ी से पंगु गायों के लिए चारा लाया करते थे।