महाराणा प्रताप का जीवन परिचय|Biography of Maharana Pratap 2023
महाराणा प्रताप का जीवन परिचय| Biography of Maharana Pratap| आज हम आपको इस आर्टिकल में आपको बताएंगे महाराणा प्रताप का जीवन परिचय| Biography of Maharana Pratap|
महाराणा प्रताप का जन्म कब और कहां हुआ?
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 (जेष्ठ शुक्ल तृतीया) को राजसमंद जिले में स्थित कुंभलगढ़ के दुर्ग में हुआ। प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ में स्थित बादल महल के जनाना कक्ष में हुआ था।
महाराणा प्रताप के बचपन का नाम कीका था तथा कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 कोई ही हुआ था। Biography of Maharana Pratap
महाराणा प्रताप के माता पिता का क्या नाम है?
महाराणा प्रताप के पिता मेवाड़ के शासक उदय सिंह थे तथा प्रताप की माता जैबन्ता बाई थी जो राजस्थान के पाली जिले की निवासी थी। महाराणा प्रताप उदय सिंह की दूसरी रानी जैबन्ता बाई के गर्भ से जन्मे थे।
महाराणा प्रताप बचपन से ही हष्ट पुष्ट पेशल कहा जाता है कि प्रताप का शरीर इतना मजबूत कद काठी का था कि एक बार तो किसी भी सामान्य व्यक्ति को देखने पर वे असाधारण प्रतीत होते थे। Biography of Maharana Pratap
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक कब और कहां हुआ?
महाराणा प्रताप का सर्वप्रथम राज्याभिषेक समारोह 28 फरवरी 1572 को उदयपुर जिले में स्थित गोगुंदा स्थान पर हुआ था।
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तत्पश्चात महाराणा प्रताप का विधिवत राज्याभिषेक समारोह है राजसमंद जिले में स्थित कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था।
महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक समारोह के दौरान इन्हें शाही तलवार ब्राह्मण कृष्ण दास ने बांधी थी तथा इनको गद्दी पर इनके मामा सोनगरा चौहान अखेराज ने बिठवाया था। Biography of Maharana Pratap
अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए कितने शिष्टमंडल भेजे थे ?
मुगल शासक अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए 4 शिष्टमंडल भेजे थे जो निम्न है-
जिनमें अकबर ने सबसे पहले जलाल खां को भेजा था तथा जलाल खां के बाद आमेर के शासक मानसिंह को भेजा था।
तत्पश्चात अकबर ने भगवान दास तथा टोडरमल को महाराणा प्रताप को समझाने के लिए भेजा था।Biography of Maharana Pratap
अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य हुए हल्दीघाटी युद्ध के बारे में संपूर्ण जानकारी।
हल्दीघाटी का युद्ध अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य खमनोर की पहाड़ी व गोगुंदा की पहाड़ी के बीच हल्दीघाटी (रक्त तलाई) का मैदान नाथद्वारा (राजसमंद) में हुआ।
हल्दीघाटी युद्ध का नेतृत्व अकबर की ओर से मानसिंह प्रथम तथा आसफ खां ने किया था। तथा महाराणा प्रताप की ओर से महाराणा प्रताप युद्ध के नेतृत्वकर्ता थे।
हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर के मध्य 21 जून 1576 को हुआ था। इस युद्ध में अकबर की महाराणा प्रताप के सामने अप्रत्यक्ष रूप से हार हुई थी।
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हल्दीघाटी युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक घायल हो गया था इसलिए प्रताप को युद्ध स्थल से बाहर जाना पड़ा।
महाराणा प्रताप को युधिष्ठिर छोड़ने के बाद में महाराणा प्रताप की सेना के प्रधान सेनापति हकीम खां सूरी ने युद्ध का नेतृत्व किया था और अंततः प्रताप के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। Biography of Maharana Pratap
हल्दीघाटी के युद्ध को लेकर विभिन्न इतिहासकारों के मत
अमर काव्य वंशावली तथा राज प्रशस्ति के लेखक रणछोड़ भट्ट तैलंग के अनुसार युद्ध स्थल से बाहर निकलने के बाद प्रताप की मुलाकात उनके भाई शक्ति सिंह उर्फ जगमाल सिंह से हुई थी।
सगत सिंह रासो के लेखक गिरधर ओसिया के अनुसार जगमाल सिंह उर्फ शक्ति सिंह मुगलों की ओर से लड़ा था।
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हल्दीघाटी के युद्ध को अब्दुल कादिर बदायूनी ने गोगुंदा का युद्ध का इसका उल्लेख मुन्ताफ उत तवारिख पुस्तक में मिलता है।
हल्दीघाटी के युद्ध को कर्नल जेम्स टॉड ने मेवाड़ की थर्मोपोली कहा।Biography of Maharana Pratap
महाराणा प्रताप द्वारा लड़ा गया द्वितीय प्रमुख युद्ध
महाराणा प्रताप द्वारा लड़ा गया दूसरा प्रमुख युद्ध दिवेर का युद्ध माना जाता है जो अक्टूबर 1582 में हुआ था इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने दिवेर के थानाधिकारी सुल्तान खां तथा अब्दुल रहीम खाने खां पर आक्रमण किया था और विजय प्राप्त की थी।
महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की धरती को मुगलों से मुक्त कराने का अभियान दिवेर से ही शुरू किया था तथा कर्नल जेम्स टॉड ने दिवेर का युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा।Biography of Maharana Pratap
महाराणा प्रताप द्वारा लड़ा गया अंतिम युद्ध
महाराणा प्रताप के जीवन का अंतिम युद्ध चावंड के युद्ध को माना जाता है जो 1585 में राजस्थान के उदयपुर जिले में हुआ था इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने लुणा चावंडिया को पराजित किया था तथा चावंड को अपनी राजधानी बना ली थी।
महाराणा प्रताप के जीवन के अंतिम 12 वर्ष चावंड में ही शांतिपूर्ण तरीके से व्यथित हुए थे। महाराणा प्रताप मेवाड़ के एकमात्र ऐसे शासक थे जिन्होंने कभी भी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की थी।Biography of Maharana Pratap
महाराणा प्रताप का निधन कब और कहां हुआ?
महाराणा प्रताप का निधन 19 जनवरी 1597 को चावंड में ही हुआ।
तथा महाराणा प्रताप का अंतिम संस्कार बांडोली (उदयपुर) में किया गया जहां महाराणा प्रताप की 8 खंभों की छतरी बनी हुई है।Biography of Maharana Pratap
महाराणा प्रताप और हल्दीघाटी के युद्ध से जुड़ी अन्य जानकारी
- महाराणा प्रताप की आर्थिक स्थिति खराब होने पर ईडर (गुजरात) निवासी भामाशाह ने प्रताप की आर्थिक सहायता की थी इसलिए भामाशाह को मेवाड़ का रक्षक कहते हैं।
- कर्नल जेम्स टॉड ने भामाशाह को मेवाड़ का करण कहा था तथा महाराणा प्रताप ने भामाशाह को अपनी सेना का प्रधान बनाया था।
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- हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की ओर से नेतृत्वकर्ता आसफ खां धर्म युद्ध का नारा दिया था।
- हल्दीघाटी के युद्ध में महितर खां नामक एक मुगल सैनिक ने यह कहते हुए मुगल सेना में जोश भर दिया था कि “या तो तुम लड़ लो नहीं तो अकबर स्वयं आ रहा है।”
- अकबर ने हल्दीघाटी का युद्ध अप्रत्यक्ष रूप से हारने के बाद मानसिंह की मनसबदारी छीनकर इसकी सेना को शाहिदाग से मुक्त कर दिया था।
- हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने जंगलों में शरण ली तथा आजीवन छापामार या गुरिल्ला पद्धति के द्वारा अकबर के विरुद संघर्ष जारी रखा था।