करणी माता का इतिहास, karni Mata
आज हम इस लेख के माध्यम से आपको बताएंगे करणी माता का इतिहास, karni Mata। राजस्थानी संस्कृति में लोक देवियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है और यहां के लोगों की आस्था लोक देवियों के साथ जुड़ी हुई है। इसलिए आज हम आपको बताएंगे करणी माता का इतिहास।
क्या है करणी माता का इतिहास-
मां करणी का जन्म 1387 ईस्वी में राजस्थान राज्य के जोधपुर जिले (सुवाप गांव) में हुआ। करणी माता के पिता का नाम मेहाजी था इन्होंने ही करणी माता का लालन-पालन किया था। तथा करणी माता की मां का नाम देवल बाई था।
करणी माता के मंदिर में सैकड़ों की तादाद में रोज चूहे आते हैं इसलिए करणी माता को चूहों की देवी भी कहा जाता है। करणी माता बीकानेर के राठौड़ वंश की आराध्य देवी मानी जाती है तथा चारणों की कुलदेवी।
करणी माता के बचपन का नाम रिद्धि बाई था। करणी माता को जगत माता का अवतार माना जाता है। करणी माता का विवाह है देशनोक (बीकानेर) के रहने वाले दैपाजी के साथ हुआ था। लेकिन करणी माता विलासिता पूर्ण वैवाहिक जीवन नहीं जीना चाहती थी।
इसलिए उन्होंने अपने पति का विवाह है अपनी छोटी बहन गुलाब के साथ करवा दिया था। बीकानेर में स्थित देशनोक की स्थापना स्वयं करणी माता ने की थी देशनोक इस स्थान पर ही करणी माता का भव्य सुसज्जित मंदिर बना हुआ है।
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करणी माता के मंदिर का निर्माण राव बीका ने करवाया था करणी माता के मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार सोने से निर्मित है। करणी माता के मंदिर का आधुनिक निर्माण महाराजा गंगा सिंह ने पूरा करवाया था।
करणी माता के मंदिर की आकृति मठ के समान हैं जो देखने पर उल्टी कटोरी के समान प्रतीत होती है।
करणी माता को मारवाड़ के राठौड़ वंश की आराध्य देवी भी माना जाता है। देशनोक बीकानेर में करणी माता की पूजा चमत्कारिक देवी के रूप मैं की जाती है क्योंकि करणी माता ने अपने चमत्कारों के माध्यम से अनेक लोगों की विकलांगता, बहरापन तथा गूंगा पन दूर किया था।
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करणी माता ने जोधपुर में बने मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव 1459 ईसवी में रखी थी। दुर्ग का निर्माण राव जोधा ने करवाया था। तथा करणी माता के आशीर्वाद से ही राव बीका ने कोडमदेसर नामक स्थान पर बीकानेर राज्य की स्थापना की थी।
करणी माता की गुफा धनेरू तलाई के पास दियात्रा गांव बीकानेर में स्थित है। करणी माता के मंदिर में करणी माता के प्रतीक चिन्ह के रूप में सफेद चील को पूजा जाता है। तथा करणी माता को ओलावृष्टि की रक्षक देवी भी माना जाता है।
करणी माता के मंदिर देशनोक में प्रतिवर्ष चैत्र व अश्विन के नवरात्रों में भव्य मेले का आयोजन होता है जिसमें राजस्थान के कोने-कोने से देखने के लिए पर्यटक पहुंचते हैं।
करणी माता के मंदिर के नजदीक सावन-भादो की कढाइयां रखी हुई है। करणी माता ने अपने संपूर्ण जीवन काल में अनेक अच्छे कार्य किए। कथा करणी माता ने अपना संपूर्ण जीवन मानवतावादी हितों की रक्षा करने के लिए समर्पित कर दिया था।
वैसे कहा जाता है कि चूहों से प्लेग नामक बीमारी फैलती है। लेकिन करणी माता के मंदिर में सैकड़ों की तादाद में चूहे आते हैं और जब तक भक्तगण चूहों का झूठा प्रसाद ग्रहण नहीं कर लेते तब तक माता के दर्शन संपन्न नहीं मानते हैं लेकिन करणी माता के मंदिर में आने वाले भक्त गणों में अब तक किसी भी प्रकार के बीमारी के लक्षण नहीं पाए गए हैं। इसलिए भी करणी माता को चमत्कारिक देवी के नाम से जाना जाता है।
करणी माता के स्वयं के कोई पुत्र नहीं था इसलिए करणी माता ने अपनी बहन गुलाब के पुत्र लक्ष्मण को गोद लिया था।