खेजड़ी के वृक्ष की पूजा कब और कैसे की जाती है ?
खेजड़ी के वृक्ष की पूजा कब और कैसे की जाती है ? तथा खेजड़ी के वृक्ष की पूजा करने का महत्व और खेजड़ी के वृक्ष की पूजा करने की विधि।
खेजड़ी के वृक्ष की पूजा कब और कैसे की जाती है ?
खेजड़ी वृक्ष की पूजा रक्षाबंधन यानी कि श्रावण पूर्णिमा के दिन तथा आश्विन शुक्ल दशमी यानी कि दशहरे के पर्व के दिन की जाती है।
आधुनिक युग में भी खेजड़ी वृक्ष की पूजा करने की परंपरा अनरवत जारी है। भारत के अनेक ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी दशहरे तथा रक्षाबंधन के अवसर पर खेजड़ी के वृक्ष की पूजा करने की परंपरा है।
रक्षाबंधन तथा श्रावण पूर्णिमा के अतिरिक्त भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन भी खेजड़ी के वृक्ष की पूजा की जाती है।
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खेजड़ी के वृक्ष की पूजा लाल रंग का मौली का धागा बांधकर तथा रोली शिवराजपुर तिलक करके की जाती है। लाल रंग के धागे को सात बार खेजड़ी के पेड़ के चारों ओर घुमाकर बांध दिया जाता है।
खेजड़ी के वृक्ष की पूजा करने का महत्व
खेजड़ी के वृक्ष की पूजा करने के महत्व के बारे में अनेक धार्मिक ग्रंथों में जानकारी मिलती है। कोई भी व्यक्ति यदि आर्थिक तंगी से परेशान है और उसका कोई भी काम सही समय पर पूर्ण नहीं होता है तो ऐसे व्यक्ति को खेजड़ी के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए क्योंकि खेजड़ी के वृक्ष की पूजा करने से सभी कार्य ऑन होते हैं।
खेजड़ी के वृक्ष का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही वैदिक महत्व है धार्मिक ग्रंथों तथा वेदों के अंदर भी खेजड़ी के वृक्ष की पूजा करने का विवरण मिलता है।
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खेजड़ी के वृक्ष की पूजा करने की विधि
खेजड़ी के वृक्ष की पूजा करने से पहले पूजा करने वाले व्यक्ति को स्नानादि करके निवृत्त हो जाना चाहिए। उसके बाद एक बाल्टी के अंदर साफ जल भर लेना चाहिए तथा जल में थोड़ा दूध, घी, शहद तथा दही डाल लेना चाहिए।
और इन सब को खेजड़ी के पेड़ की जड़ों में डाल देना चाहिए इसके बाद में खेजड़ी को धागा बांध करके अपनी मनोकामनाएं मांगनी चाहिए। और अंत में खेजड़ी के वृक्ष को प्रणाम करके भोजन करना चाहिए।