शीतला माता का जीवन परिचय 2024 | इतिहास | कहानी | मंदिर
शीतला माता का जीवन परिचय 2024 | इतिहास | कहानी | मंदिर , शीतला माता का इतिहास क्या है?, शीतला माता के उपनाम , शीतला माता के पति कौन है ?
शीतला माता का जीवन परिचय 2024 | इतिहास | कहानी | मंदिर
लोक देवी शीतला माता की राजस्थान के ढुढा़ड़ क्षेत्र में विशेष मानता है। यह माता बच्चों में उत्पन्न होने वाली बीमारी चेचक की संरक्षिका के रूप में ख्याति प्राप्त है।
शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता को चढ़ाए जाने वाला ठंडे भोजन का प्रसाद बास्योड़ा कहलाता है, जो की शीतला अष्टमी के एक दिन पूर्व चैत्र कृष्ण सप्तमी के दिन चढ़ाया जाता है। तथा शीतला माता के मंदिर में मिट्टी के बर्तन चढ़ाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।
शीतला माता का इतिहास क्या है ?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस माता ने अग्नि में जलने से एक गांव की रक्षा की थी और सैकड़ो गांव वालों को मौत के मुंह में जाने से रोका था। इसलिए अग्नि को शीतल करने के कारण इस माता का नाम शीतला माता पड़ा था।
शीतला माता के उपनाम
लोक देवी शीतला माता को चेचक की देवी, बच्चों की संरक्षण का माता, सैंढ़ल की देवी तथा महामाया के उपनाम से जाना जाता है।
शीतला माता के पति कौन है?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लोक देवी शीतला माता का पति भगवान शिव को माना गया है।
शीतला माता किसकी कुलदेवी है ?
मिट्टी के बर्तन बनाने वाली कुम्हार जाति की कुलदेवी शीतला माता है।
शीतला माता का मेला कब लगता है ?
लोक देवी शीतला माता का मेला प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण अष्टमी (शीतला अष्टमी) के दिन लगता है। इस मेले को बैलगाड़ियों का मेला भी कहा जाता है तथा शीतलाष्टमी के दिन खेजड़ी वृक्ष की पूजा की जाती है।
शीतला माता का मंदिर कहां है?
शीतला माता का मुख्य मंदिर जयपुर के चाकसू नामक स्थान पर है। यह मंदिर शील डूंगरी नाम की पहाड़ी पर बना हुआ है। इसका निर्माण माधोसिंह ने करवाया था। तथा इस मंदिर में शीतला माता की खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है।
इसके अतिरिक्त शीतला माता का एक अन्य मंदिर उदयपुर जिले के गोगुंदा नामक स्थान पर है, जिसे शीतला माता का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है।
शीतला माता के गुरु कौन है ?
शीतला माता के गुरु द्रोण तथा कृपाचार्य थे। उनके सानिध्य में ही शीतला माता ने चमत्कारों की शिक्षा दीक्षा प्राप्त की थी।
शीतला माता का वाहन क्या है ?
शीतला माता का वाहन गधा है। इसलिए शीतला अष्टमी के दिन जयपुर के लूनियावास नामक स्थान पर गधों का मेला भरता है।