राधा अष्टमी कब मनाई जाती है ?
राधा अष्टमी कब मनाई जाती है ? तथा राधा अष्टमी के दिन मेला कहां लगता है ? एवं राधा अष्टमी का महत्व
राधा अष्टमी कब मनाई जाती है ?
सनातन धर्म में प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन राधा अष्टमी मनाई जाती है। इस दिन को सनातन धर्म में राधा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। यह पर्व राधा तथा भगवान कृष्ण के प्रेम का परिचायक है।
जन्माष्टमी के एक पखवाड़े के बाद मनाया जाने वाला यह पर्व बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण तथा राधा जी की पूजा संयुक्त रुप से करने की परंपरा चली आ रही है।
राधा अष्टमी के दिन भगवान कृष्ण और राधा की एक साथ पूजा करनी चाहिए तथा दोनों की छोटी प्रतिमाएं एक साथ किसी बड़े पाट पर स्थापित करनी चाहिए तथा उनके समक्ष लाल तथा पीले पुष्प अर्पित करने चाहिए।
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तथा राधा कृष्ण की प्रतिमाओं को पंचामृत से स्नान करवाने के बाद इन्हें मूल का धागा बांधना चाहिए तथा रोली का तिलक करना चाहिए। तथा राधा जी और कृष्ण की पूजा संयुक्त रूप से मंत्रों का जाप करते हुए करनी चाहिए।
राधा अष्टमी के दिन श्री राधा कृपा कटाक्ष भाजन्म का पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। राधा अष्टमी के दिन किए जाने वाले वृत्त के दूसरे दिन ब्राह्मणों को वस्त्र दान करके अन्यथा गरीबों को भोजन दान करके व्रत को पूर्ण करना चाहिए।
राधा अष्टमी के दिन मथुरा, वृंदावन, द्वारिकाधीश, कांकरोली इत्यादि स्थानों पर विशाल मेला लगता है जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु भाग लेने आते हैं और भगवान कृष्ण तथा राधा जी की पूजा आराधना करते हैं।
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राधा अष्टमी का महत्व विशेष होता है क्योंकि इस दिन राधा तथा भगवान कृष्ण की संयुक्त रूप में पूजा की जाती है। इसलिए इस दिन जो भी प्रेमी जोड़ा भगवान कृष्ण तथा राधा जी की आराधना करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।