घूमर (Ghoomar Lok nritya)
घूमर (Ghoomar Lok nritya)- ये लोकनृत्य राजस्थान का राज्य/राजकीय लोक नृत्य है। जो संपूर्ण राजस्थान में प्रचलित है। इस लोकनृत्य को नृत्यों की आत्मा कहा जाता है। इस नृत्य में नृत्यांगना नृत्य करते समय जिस साल को प्रदर्शित करती है उसे सवाई साल के नाम से जाना जाता है।

घूमर एक रजवाड़ी लोकनृत्य हैं। इस लोकनृत्य का प्रदर्शन करते समय नृत्यांगना 80 से 120 कली का लहंगा पहनती है। ये लोकनृत्य जल सारंगधर की कथा पर आधारित होता है। इस लोकनृत्य का आयोजन राजकीय व धार्मिक अवसरों पर किया जाता है। इस नृत्य का आयोजन मुख्य रूप से गणगौर(चैत्र शुक्ल तृतीया) व तीज (श्रावण शुक्ल तृतीया)के अवसर पर किया जाता है।
घूमर लोकनृत्य के समय शहनाई/ढोल व नगाड़े की धुन का प्रयोग किया जाता है। इन वाद्य यंत्रों की उनके आगे ही नृत्यांगनाओं के पांव थिरकते हैं। अष्टताल पद्धति पर आधारित इस लोकनृत्य का स्थान विश्व के लोक नृत्यों में चौथे पायदान पर हैं। तथा इस लोक नृत्य को रजवाड़ी स्कंध भी कहा जाता है।
सबसे बड़े घूमर लोक नृत्य के समारोह का आयोजन राजस्थान की राजधानी जयपुर में किया जाता है। तथा इस लोकनृत्य को नृत्यों का सिरमौर भी कहा जाता है।
घूमर नृत्य का प्रदर्शन करते समय नृत्यांगना गोल-गोल घूमती है इसलिए इस लोकनृत्य का नाम घूमर पड़ा है। इस लोक नृत्य के लिए उपयुक्त गीत “म्हारी घूमर छे नखराली” है।
राजस्थान में घूमर लोकनृत्य के तीन प्रकार है जिनके बारे में भी हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताएंगे।
1.घूमर- इस लोकनृत्य में साधारण महिलाएं भाग लेती है। तथा साधारण महिलाएं ही इस लोकनृत्य का प्रदर्शन करती है।
2.लूर घूमर- घूमर लोकनृत्य के ही अंतर्गत आने वाले लूर घूमर नृत्य को राजपूत महिलाएं प्रदर्शित करती है। तथा इसका प्रचलन गरासिया जनजाति की महिलाओं में भी है।
3. झूमरियों घूमर- इस लोक नृत्य में बालिकाऐं भाग लेती है।
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