Really Bharat के लेखक Prakash Choudhary Pareu की यादें : गांवों को समर्पित

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Story of Prakash Choudhary Pareu And Really Bharat

Really Bharat की शुरुआत आंधियों के थपेड़े में की गई , मेरे द्वारा लिखी गई कहानियां या खबरें , उन तेज आंधियों में बिजली की अनुपस्थिति में एक रफ कॉपी से की गई।

अब आपके मन में जरुर सवाल आया होगा कि Really Bharat क्या है ?

Really Bharat (रियली भारत ) एक न्यूज़ पोर्टल है जो कि अगस्त 2021 में राजस्थान से अस्तित्व में आया , वर्तमान में भी हिंदी में खबरें प्रकाशित करने एवं सामान्य जानकारी जनता तक पहुंचाने के रूप में प्रयासरत है।

Really Bharat
Really Bharat

जहां तक मेरा मानना है गांवों तक आज भी सरकार नहीं पहुंच पाई है , आज मैं बात करूंगा मेरे रेगिस्तान के गांवों के बारे , चूंकि मैं खुद राजस्थान के रेगिस्तान में पला बढ़ा हूं तो रेगिस्तान और राजस्थान के गांव की बात करना, मेरे लिए अनुभव सहित व्याख्यान हो सकता है। और सरकार को गांव ढाणी तक पहुंचाने के लिए रियली भारत (Really Bharat ) ने अपना सफर शुरू किया।

Prakash Choudhary
Prakash Choudhary

यूं तो मेरी ज्यादा उम्र नहीं होने की वजह से मैं खुद को एक अनुभवी नहीं कह सकता लेकिन मैं गांव के रीतियों से अनभिज्ञ भी नहीं हूं ।

मैंने अपने इस आर्टिकल की शुरुआत में कहा था कि गांवों तक सरकार आज भी नहीं पहुंच पाई है यह सुनकर आपको भले ही अजीब लगा हो लेकिन राजस्थान के गांव में आज तक सरकार नहीं पहुंच पाई है इसे मैं सच मानता हूं , मैंने सुना है कि जहां तक सरकार पहुंच जाती है वहां पर सरकार आम जनता को मूलभूत सुविधाओं से वंचित नहीं रखते मूलभूत सुविधाओं का नाम ले तो हमारे जहन में सबसे पहले शिक्षा , सड़क , बिजली एवं पानी जैसी सुविधाएं आएगी ।

लेकिन हम जनता की मूलभूत समस्याओं की आवाज सरकार तक पहुंचाएंगे , हमारा प्रयास है कि हम रियली भारत ( Really Bharat ) माध्यम से जनता को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाएंगे ।

अगर इसके अलावा चिकित्सा की बात की जाए तो आज भी मेरे रेगिस्तान में हर साल हजारों लोगों की जान इसके अभाव में चली जाती है , आज भी यहां पर अगर जादू टोटकों की बात की जाए तो कोई देश आजाद होने के बाद खास फर्क नजर नहीं आ रहा है , प्रत्येक गांव में आज भी जादू टोनों का प्रभाव काफी देखा जा सकता है , लेकिन मैं मरुस्थल के धोरों में बसे गांवों में अगर प्रशासनिक व्यवस्था की बात करूं तो शायद शहरों से बेहतर होगी , क्योंकि इन गांवों में आज भी किसी भी लड़ाई झगड़े का अंतिम निर्णय हाईकोर्ट में पैसों के बलबूते नहीं होता , आज भी अंतिम निर्णय गांव की ओर 200 वर्ष पुराने पीपल के नीचे सभा करके सभी की सहमति से लिया जाता हैं ।

गांव के लोग आज भी कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने के बजाय गांव के लोगों को इकट्ठा करके मामला सुलझाने में रुचि रखते हैं।

 

मैं प्रकाश चौधरी ( Prakash Choudhary Pareu  ) एक लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हूं , एवं जनता तक हर जरूरी जानकारी पहुंचने की कोशिश करता हूं ।

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