बिजोलिया किसान आंदोलन (1897-1941)
राजस्थान में बिजोलिया किसान आंदोलन की शुरुआत 1897 में हुई, 1897 से यह आंदोलन 1941 तक चला जो संपूर्ण भारत का सबसे लंबा ( 44 वर्ष ) चलने वाला किसान आंदोलन था।
बिजोलिया किसान आंदोलन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी-
- राजस्थान में सुसंगठित जनचेतना जागृत करने का श्रेय भी बिजोलिया किसान आंदोलन को जाता है। यह मेवाड़ राज्य का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था।
- बिजोलिया ठिकाने के प्रथम जागीरदार अशोक परमार थे जो मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर जिले के निवासी थे।
- अशोक परमार के बाद बिजोलिया ठिकाने के जागीरदार राव कृष्ण सिंह बने थे उनके समय किसानों से 84 प्रकार की लाल तेली जाति थी।
- इन सभी लागतो से परेशान होकर बिजोलिया ठिकाने के किसानों ने सन 18 सो 97 में गिरधारीपुरा नामक गांव में नानक जी पटेल और ठाकरे जी पटेल ने किसानों पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों की शिकायत करने उदयपुर के महाराजा के पास पहुंच गए थे।
इस आंदोलन की शुरुआत 1897 में ही हो गई थी। तथा इस आंदोलन का नेतृत्व 1916 ईस्वी के बाद विजय सिंह पथिक ने किया।
- बिजोलिया किसान आंदोलन 1897 से 1941 ईस्वी तक चला। बिजोलिया मेवाड़ रियासत का ठिकाना था यह किसान आंदोलन सबसे लंबे समय तक चला तथा अहिंसात्मक किसान आंदोलन था।
- बिजोलिया ठिकाने में 84 प्रकार के कर लिए जाते थे इसके अतिरिक्त किसानों से लागबाग एवं बेगार भी ली जाती थी।
- तुलसी भील बिजोलिया किसान आंदोलन में किसानों का एक असाधारण संदेशवाहक था तथा इस आंदोलन में धाकड़ जाति के किसानों ने सबसे ज्यादा योगदान दिया।
- बिजोलिया ठिकाने में भूमि कर निश्चित करने की प्रथा कूंता कहलाती थी।
- विजय सिंह पथिक ने बिजोलिया किसान आंदोलन में कार्य करते हुए चित्तौड़गढ़ के समीप और ओछड़ी गांव में किसानों के लिए विद्या प्रचारिणी सभा की स्थापना की।
- बिजोलिया किसान आंदोलन के दौरान 1919 में बिंदु लाल भट्टाचार्य आयोग का गठन किया गया जिसने बंधक बनाए हुए किसानों को मुक्त करवाया।
- 1916 में विजय सिंह पथिक, माणिक्य लाल वर्मा और साधु सीताराम दास के सहयोग से विद्या प्रचारिणी सभा के माध्यम से बिजोलिया किसान आंदोलन के सभी किसानों को संबोधित किया गया।
- 1920 में विजय सिंह पथिक ने राजस्थान केसरी अखबार के माध्यम से किसानों की आवाज देशवासियों तक पहुंचाई।
- विजय सिंह पथिक ने बिजोलिया किसान आंदोलन को भारतीय स्तर पर लोकप्रिय प्रताप नामक समाचार पत्र के माध्यम से बनाया। जिसके प्रकाशक गणेश शंकर विद्यार्थी थे तथा यह अखबार कानपुर से प्रकाशित होता था।
- मेवाड़ सरकार ने स्थिति को सुलझाने के लिए एक कमीशन की नियुक्ति की जिसके सदस्य ठाकुर अमर सिंह, अफजल अली और बिंदु लाल थे लेकिन इनकी रिपोर्ट को रद्द कर दिया गया।
- 1986 में राव कृष्ण सिंह की मृत्यु के बाद पृथ्वी सिंह बिजोलिया का शासक बना पृथ्वी सिंह ने जनता पर नया तलवार बंधाई कर लगाया। इसके विरोध में बिजोलिया की जनता ने विद्रोह कर दिया, लेकिन पृथ्वी सिंह ने इस पर को समाप्त नहीं किया।
- 1917 ईस्वी में किसानों ने साधु सीताराम दास की अध्यक्षता में किसान पंच बोर्ड की स्थापना कर ली और विजय सिंह पथिक जी के सुझाव अनुसार युद्ध ऋण देने से इनकार कर दिया।
- माणिक्य लाल वर्मा बिजोलिया आंदोलन के प्रमुख नेता थे। माणिक्य लाल वर्मा और विजय सिंह पथिक के मध्य में वैचारिक मतभेद होने के कारण विजय सिंह पथिक इस आंदोलन से अलग हो गए।
- माणिक्य लाल वर्मा द्वारा किसानों को संगठित कर इस आंदोलन में एक नई जान फूंकी गई। जिसके फलस्वरूप मेवाड़ रियासत के प्रधानमंत्री विजय राघवाचार्य के मध्य समझौता हो गया और आंदोलन समाप्त हो गया।