होली कब और क्यों मनाई जाती है?
आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताएंगे होली कब और क्यों मनाई जाती है?
जानिए होली कब मनाई जाती है-
हिंदू/ सनातन धर्म का पर्व होली हिंदू पंचांग के अनुसार वसंत ऋतु में प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसलिए इस पर्व को वसंतोत्सव के नाम से भी जाना जाता है।
हिंदू धर्म की धार्मिक आस्था से जुड़े इस पर्व पर अनेक धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन होते हैं तथा हिंदू धर्म के लोग इस दिन एक दूसरे के साथ रंग खेलते हैं तथा गाना बजाना करते हैं। और इसी दिन होलिका दहन भी किया जाता है।
होली को होलिका, फगुआ तथा छारंडी के नाम से भी जाना है। इस पर्व का आरंभ प्राचीन काल से ही माना जाता है। जो निरंतर चलता आ रहा है। प्राचीन काल में मुगल शासक शाहजहां तथा नूरजहां ने भी इस रंगों के त्यौहार होली के पर्व का लुफ्त उठाने से परहेज नहीं किया था।
होली का पर्व मुख्य रूप से हिंदू समुदाय के लोग मनाते हैं तथा ये पर्व
मुख्यत: भारत तथा नेपाल में मनाया जाता है क्योंकि यहां पर अधिकांश हिंदू समुदाय के अनुयायी निवास करते हैं।
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इस महापर्व को वसंत का संदेशवाहक माना जाता है। तथा इसे काम महोत्सव भी कहा जाता है। ये तो त्योहार हजारों वर्षो से मनाया जा रहा है होली के त्यौहार के बारे में जानकारी हिंदू धर्म के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों से भी मिलती है अनेक धार्मिक ग्रंथों के बारे में होली के इस महापर्व का नखशिख वर्णन किया गया है।
होली क्यों मनाई जाती है-
इसे मनाने के संदर्भ में एक प्राचीन कहानी है जो हम आपको बता रहे हैं कहा जाता है कि प्राचीन काल में एक हिरण्यकश्यप नाम का अति बलशाली राक्षस था जो अपने क्रूर स्वभाव और घमंडी पन के लिए कुख्यात था। दरअसल हिरण्यकश्यप नामक इस राक्षस का पुत्र प्रहलाद ईश्वर भक्ति में गहन आस्था रखता था। प्रहलाद भगवान श्री कृष्ण का प्रिय भक्त था।
लेकिन यह बात मैंने हिरण्यकश्यप को खटकती थी। हिरण्यकश्यप चाहता था कि कोई भी उसके समक्ष शक्तिशाली नहीं है और उससे बड़ा कोई ईश्वर नहीं है इसलिए प्रहलाद को कृष्ण भक्ति करने के कारण अनेक बार हिरण्यकश्यप ने कठोर यातनाएं और दंड दिया।
यहां तक कि एक बार तो हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को जंगल में सांपों को डसने के लिए छोड़ दिया लेकिन ईश्वर की भक्ति और आस्था के चलते सांपों ने प्रहलाद को नहीं डसा।
इसके बाद हिरण्यकश्यप ने सोचा कि ये ऐसे मृत्यु को प्राप्त नहीं होगा इसलिए उसने अपनी बहन होलिका जिसे आग में भी नहीं जलने का वरदान था उसे कहा कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाए और अग्नि में प्रवेश कर जाए और होलिका ने ऐसा ही किया किंतु प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका खुद जल गई। इसीलिए भक्त प्रहलाद की याद में ही होली का ये पर्व मनाया जाता है।