राजस्थान के प्रमुख लोक वाद्य यंत्र 2022
आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताएंगे राजस्थान के प्रमुख लोक वाद्य यंत्र।
राजस्थान के लोक वाद्य यंत्रों को 4 प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। जो निम्न है-
1.सुषिर लोक वाद्य यंत्र- इस श्रेणी के लोक वाद्य यंत्रों में ध्वनि फूंक मारकर उत्पन्न की जाती है।
2.. तत् लोक वाद्य यंत्र- इस श्रेणी के लोक वाद्य यंत्रों में तारों के माध्यम से ध्वनि उत्पन्न की जाती है।
3.अवनद्य/ताल लोक वाद्य यंत्र-श्रेणी के लोक वाद्य यंत्रों में चमड़े से निर्मित ऐसे वाद्य यंत्र जिन पर चोट कर आवाज उत्पन्न की जाए वे शमिल है।
4.घन लोक वाद्य यंत्र- धातु से निर्मित लोक वाद्य यंत्र घन वाद्य यंत्र की श्रेणी में आते हैं।
प्रमुख वैवाहिक रिवाज़ (major matrimonial rituals)
प्रमुख सुषिर लोक वाद्य यंत्र-
अलगोजा- इस लोक वाद्य यंत्र का निर्माण दो बांसुरियों को जोड़कर किया जाता है। इस लोक वाद्य यंत्र को बाड़मेर के रण फकीरों का वाद्य यंत्र भी कहा जाता है। राजस्थान में इसके प्रमुख वादक धोधे खां थे। 1982 में दिल्ली में आयोजित हुए एशियाई गेम्स का प्रारंभ अलगोजा वादन के साथ ही हुआ था। इस लोक वाद्य यंत्र का प्रयोग राजस्थान के ग्रामीण अंचल में सर्वाधिक होता है। ग्रामीण अंचल के लोग इस लोक वाद्य यंत्र का वादन कृषि करते समय भी करते हैं।
शहनाई- इस लोक वाद्य यंत्र को नफरी/ सुंदरी/ हहनाई/नकसासी/हुसाई आदि नामों से भी जाना जाता है। इस लोक वाद्य यंत्र के प्रमुख वादक बिस्मिल्लाह खां थे। जिन्हें 2001 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वर्तमान समय में इस लोक वाद्य यंत्र के प्रमुख वादक हुसैन खां है। सुषिर लोक वाद्य यंत्रों में सर्वश्रेष्ठ शहनाई को ही माना जाता है।
मोरचंग- इस लोक वाद्य यंत्र को राजस्थान का ज्युप हार्प भी कहा जाता है। ये सबसे छोटा लोक वाद्य यंत्र है।
बांसुरी- इसे भगवान श्री कृष्ण का लोक वाद्य यंत्र माना जाता है तथा इसके प्रमुख वादक हरिप्रसाद चौरसिया थे। बांसुरी में कुल 7 छिद्र होते हैं। तथा 5 छिद्रों वाली बांसुरी को पावला के नाम से जाना जाता है तो 6 छिद्रों बांसुरी को रुला के नाम से जाना जाता है।
मश्क- इस लोक वाद्य यंत्र का सर्वाधिक प्रचलन राज्य के सवाई माधोपुर तथा अलवर जिले में है इस लोक वाद्य यंत्र को भेरुजी के भोपा द्वारा बजाया जाता है।
Visit Now : – Twitter Account GAANV KHABAR
प्रमुख तत् लोक वाद्य यंत्र-
रावण्हत्था- इस लोक वाद्य यंत्र का निर्माण अध कटे नारियल से किया जाता है। इस लोक वाद्य यंत्र में तारों की संख्या 9 होती है। जिनमें घोड़े की पूंछ से बना तार पुखावज तथा अन्य तार तरब कहलाते हैं। इस लोक वाद्य यंत्र का प्रयोग लोक देवताओं के फड़ वाचन के समय किया जाता है।
रबाब- इस लोक वाद्य यंत्र में कुल तारों की संख्या 4 से 5 के बीच रखी जाती है ये राज्य में टोंक तथा मेवाड़ क्षेत्र में प्रसिद्ध है इसका वादन नखवी जाति द्वारा किया जाता है।
जंतर- इस लोक वाद्य यंत्र का प्रयोग देवनारायण जी की फड के वाचन में किया जाता है इसमें कुल तारों की संख्या 5 से 6 के मध्य रखी जाती है।
नागौर के प्रसिद्ध मंदिर, Temple Of Rajasthan
सुरिंदा- इस लोक वाद्य यंत्र में कुल तारों की संख्या 10 होती है। ये लोक वाद्य यंत्र मुख्यतः लंगा जाति द्वारा बजाया जाता है। इसका निर्माण रोहिड़ा की लकड़ी से किया जाता है तथा इसका वादन अंगुलियों के इस पर से किया जाता है।
कामयचा- इस लोक वाद्य यंत्र में कुल तारों की संख्या 16 होती है तथा इसके प्रमुख वादक सांकर खां थे। इस लोक वाद्य यंत्र के प्रथम 3 तारों को रौंदा तथा अंतिम 4 तारों को तरब कहा जाता है।
ईरानी वाद्य यंत्र- इस लोक वाद्य यंत्र को सारंगी की रानी तथा पश्चिमी राजस्थान का सरवट कहा जाता है।
भपंग- इस लोक वाद्य यंत्र का प्रचलन मेवात क्षेत्र में है। इसके प्रमुख कलाकार जहूर खां मेवाती तथा उमर फारूक मेवाती है।
अपंग- इस लोक वाद्य यंत्र का निर्माण लौकी से किया जाता है।
स्वर मंडल- इस लोक वाद्य यंत्र का प्रयोग पश्चिमी राजस्थान में मांगणियार जाती द्वारा किया जाता है। इसमें कुल तारों की संख्या 21 से 26 के मध्य होती है। इस लोक वाद्य यंत्र को मृत कोकिला तथा सूरज मंडल के नाम से भी जाना जाता है।
सारंगी- इस लोक वाद्य यंत्र में कुल 27 तारों का प्रयोग किया जाता है। इस वाद्य यंत्र का निर्माण सागवान की लकड़ी व आंत के तारों से किया जाता है। इसका वादन मुख्य रूप से लंगा तथा मांगणियार जाती द्वारा किया जाता है। इस लोक वाद्य यंत्र को कामयचा का राजा कहा जाता है तथा सिंधी सारंगी को सर्वश्रेष्ठ सारंगी माना जाता है।
प्रमुख घन लोक वाद्य यंत्र-
खड़ताल/कठताल- इस लोक वाद्य यंत्र का प्रयोग पश्चिमी राजस्थान में मांगणियार जाति द्वारा किया जाता है तथा इसे साधू सन्यासियों का वाद्य यंत्र भी कहा जाता है। इसके प्रसिद्ध कलाकार सध्दीक खां थे जिन्हें खड़ताल का जादूगर कहा जाता है।
काग्रेच्छा- इस लोक वाद्य यंत्र की आकृति ब्रुश के समान होती है तथा इसका प्रचलन वागड़ क्षेत्र में है।
राजस्थान के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल।
करताल- इस लोक वाद्य यंत्र से आपस में टकराकर ध्वनि उत्पन्न की जाती है। इसकी आकृति अंग्रेजी के B अक्षर के समान होती है।
मंजीरा- इस लोक वाद्य यंत्र का प्रयोग रामदेव जी की स्मृति में किए जाने वाले तेरहताली नृत्य में किया जाता है। इस लोक वाद्य यंत्र के मध्य रूप को ताल तथा उच्च रूप को झांझ के नाम से जाना जाता है।
प्रमुख अवनद्य/ताल लोक वाद्य यंत्र–
नगाड़ा- इस लोक वाद्य यंत्र को गजशाही व गौरव का प्रतीक माना जाता है। इसे युद्ध वाद्य भी कहा जाता है। इस लोक वाद्य यंत्र के प्रसिद्ध वादक रामकिशन है जिन्हें नगाड़े का जादूगर कहा जाता है।
टामक- ये लोक वाद्य यंत्र भरतपुर तथा सवाई माधोपुर में प्रचलित है। आकृति की दृष्टि से इसे सबसे बड़ा वाद्य यंत्र माना जाता है वर्तमान में इस वाद्य यंत्र का प्रयोग जाट व गुर्जर जाति द्वारा किया जाता है।
मांदल- ये शिव-पार्वती को समर्पित लोक वाद्य यंत्र है।
ढीबको- इस लोक वाद्य यंत्र का प्रयोग गोड़वाड़ क्षेत्र में किया जाता है।
तासा- इस लोक वाद्य यंत्र का प्रयोग मुसलमानों द्वारा मोहर्रम के अवसर पर ताजिये निकालते समय किया जाता है।
Note- वाद्य यंत्र बनाने का प्रशिक्षण राजस्थान संगीत संस्थान (जयपुर) द्वारा दिया जाता है। जिसकी स्थापना 1960 में की गई थी तथा इस संस्थान के प्रथम निदेशक ब्रह्मानंद थे। तथा संगीत की उत्पत्ति ओम शब्द से मानी जाती है।