राजस्थान की चित्रकला (Rajasthan ke chitrkla)
राजस्थान की चित्रकला का सबसे पहला वैज्ञानिक विभाजन स्वर्गीय आनंद कुमार स्वामी ने राजपूत पेंटिंग नामक पुस्तक में सन 1916 में किया था। तथा राजस्थान की चित्रकला में आधुनिक चित्रकला का श्रेय कुंदनलाल मिश्री को जाता है।
राजस्थान की प्रमुख चित्र शैलियां
मेवाड़ चित्र शैली (उदयपुर शैली)
- इस शैली का स्वर्ण काल महाराणा जगतसिंह प्रथम (1628-1652) का काल माना जाता है। यह राजस्थान की मूल तथा प्राचीन शैली मानी जाती है।
- मेवाड़ शैली में 1260-61 ई. में श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी नामक चित्र ग्रंथ प्रथम उदाहरण है। इस चित्र को चित्रित कमल चंद्र ने किया तथा यह चित्र तेज सिंह के काल का है और आहड़ उदयपुर से प्राप्त हुआ था।
- मेवाड़ शैली के चित्रों में पीले तथा लाल रंग की प्रधानता है।
नाथद्वारा चित्र शैली
- महाराणा राज सिंह के द्वारा श्री नाथ जी की स्थापना 1670 के बाद श्री नाथद्वारा वल्लभाचार्य वैष्णो का एक मुख्य धार्मिक केंद्र बन गया। जिसके बाद उदयपुर शैली तथा ब्रज शैली के मिश्रण से नाथद्वारा शैली उत्पन्न हुई।
- नाथद्वारा शैली में अरे तथा पीले रंग का अधिक प्रयोग हुआ है तथा इस शैली में बाल, गोपाल तथा राधा कृष्ण के चित्र चित्रित है।
देवगढ़ चित्र शैली
- इस चित्र शैली का विकास देवगढ़ के रावत द्वारकादास चुंडावत द्वारा हुआ। इस चित्र शैली में पीले रंग का अधिक प्रयोग हुआ है तथा अधिकांश चित्र प्राकृतिक परिवेश के बने हैं।
जैसलमेर चित्र शैली
- जैसलमेर चित्र शैली के महारावल हरराज सिंह व मूलराज मुख्य संरक्षक थे। जैसलमेर चित्र शैली का प्रमुख चित्र मुमल है जो यहां के राजप्रसादों की शोभा है।
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जयपुर चित्र शैली
- सवाई प्रताप सिंह का काल जयपुर चित्र शैली का समान काल कहलाता है। इस शैली में आदम कद तथा कामसूत्र के चित्र चित्रित हुए हैं। तथा इस शैली के चित्रों में केसरिया पीला तथा हरा रंग प्रयोग में लिया गया है।
- इस शैली का प्रमुख चित्र ईश्वर सिंह का आदम कद चित्र है जिसे साहिब राम ने चित्रित किया था।
राजस्थान की चित्रकला से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- फ्रस्को बुनो ताज प्लास्टर की दीवार पर किया गया चित्रांकन है जिसे आलागिला, अरायश व शेखावटी क्षेत्र में पणा के नाम से जाना जाता है।
- वर्षा में नृत्य करता हुआ मोर राजस्थान की एक विशेषता है। इस क्षेत्र में बूंदी की शैली बेमिसाल है।
- बूंदी शैली राजस्थान की एकमात्र ऐसी शैली है। जिसमें मोर के साथ सर्प का चित्रण है।
- राजस्थानी के मानक ग्रंथों पृथ्वीराज रासो बेली कृष्ण रुक्मणी तथा ढोला मारू रा दूहा और फारसी के गुलिस्ता बोस्ता, अनवारे सुहाली (पंचतंत्र), कलीला दमना के आधार पर महत्वपूर्ण ग्रंथ चित्रण हुए हैं।
- अलवर शैली में हाथी दांत पर चित्रण हुआ है। मूलचंद कलाकार हाथी दांत पर चित्र बनाने में कुशल माने गए हैं।
- शेखावटी क्षेत्र राजस्थान की ओपन एयर आर्ट गैलरी के लिए विश्वविख्यात है इस क्षेत्र की हवेलियों फ्रेस्को पेंटिंग के लिए प्रसिद्ध है।
- मुगल प्रभाव के कारण राजस्थान की चित्रकला में व्यक्तिगत चित्र बनाने की परंपरा शुरू हुई, जिन्हें सबीह कहा गया ।इस प्रकार के चित्र जयपुर शैली में सर्वाधिक बनाए गए हैं।
- अलवर शैली के विषयों में राधा-कृष्ण, वेश्या जीवन तथा अंग्रेजी जीवन पद्धति शामिल है।
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- स्वर्गीय श्री गोवर्धन लाल बाबा ने राजस्थानी लोक संस्कृति एवं मेवाड़ी भील जनजाति की जीवन शैली को अपनी चित्रकारी से जीवंत किया। इन्हें भीलो का चितेरा कहा जाता था। तथा इनका प्रमुख चित्र बारात है।
- महाराणा जगतसिंह प्रथम ने चित्रों की ओबरी नाम से कला विद्यालय स्थापित किया। इसे तस्वीरां रो कारखानों के नाम से भी जाना जाता है।
- राव उमेद सिंह के समय राज महल में बनी चित्रशाला बूंदी चित्र शैली के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करती है। इसको भित्ति चित्रों का स्वर्ग कहा जाता है।
- राजा सावंत सिंह यानी नागरी दास का काल किशनगढ़ शैली का स्वर्ण युग या समृद्ध काल कहा जाता है।
राजस्थान की चित्रकला के विकास के लिए कार्यरत संस्थाएं
- चितेरा संस्था- जोधपुर
- धोरा संस्था- जोधपुर
- क्रिएटिव आर्टिस्ट ग्रुप- जयपुर
- पैग संस्था- जयपुर
- कलावृत संस्था- जयपुर
- आयाम संस्था- जयपुर
- तूलिका कलाकार परिषद- उदयपुर
- टखमण-28- उदयपुर
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राजस्थान की चित्रकला के प्रमुख चित्रकार तथा उनके उपनाम
- कृपाल सिंह शेखावत- ब्लू पॉटरी का जादूगर
- भूर सिंह शेखावत- गांव का चितेरा
- परमानंद चोयल- भैंसों का चितेरा
- सौभाग्य मल गहलोत- नीड का चितेरा
- कैलाश चंद्र शर्मा- जैन शैली का चितेरा
- गोवर्धन लाल बाबा- भीलो का चितेरा
- जगन्नाथ मथोडि़या- श्वानो का चितेरा